आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी: एक विस्तृत विश्लेषण
भारत के राजनीतिक इतिहास में आपातकाल (Emergency) का दौर एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद अध्याय है। यह अवधि 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक चली, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की। इस लेख में, हम आपातकाल के प्रमुख कारणों, घटनाओं, और इसके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
आपातकाल की पृष्ठभूमि
1966 में प्रधानमंत्री बनने के बाद, इंदिरा गांधी ने कई प्रमुख नीतिगत बदलाव और सुधार किए, जिनमें बैंकों का राष्ट्रीयकरण और प्रिवी पर्स का उन्मूलन शामिल था। हालांकि, 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और 1973 के तेल संकट के कारण देश की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। इस बीच, राजनीतिक विरोध और अशांति भी बढ़ने लगी।
आपातकाल के कारण
राजनैतिक विरोध: 1974-75 में इंदिरा गांधी के खिलाफ व्यापक जनआंदोलन हुआ, जिसे जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने नेतृत्व दिया। इस आंदोलन ने इंदिरा गांधी की सरकार की नीतियों और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला: 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया और उन्हें 6 साल तक चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया। इस फैसले ने इंदिरा गांधी के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा दिया।
आंतरिक अस्थिरता: देश में बढ़ती हुई सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता, हिंसा, और हड़तालें भी आपातकाल के प्रमुख कारण बने।
आपातकाल की घोषणा और इसके प्रभाव
25 जून 1975 की रात, इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल की घोषणा के लिए राजी किया। इसके बाद, संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। इसका सीधा प्रभाव नागरिक स्वतंत्रता पर पड़ा:
नागरिक अधिकारों का हनन: संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। प्रेस की स्वतंत्रता पर सेंसरशिप लागू कर दी गई, और किसी भी प्रकार की सरकार विरोधी गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया गया।
राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी: इंदिरा गांधी सरकार ने बड़े पैमाने पर राजनीतिक विरोधियों और विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इनमें जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे प्रमुख नेता शामिल थे।
जबरन नसबंदी अभियान: आपातकाल के दौरान संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान चलाया गया। इस अभियान का उद्देश्य जनसंख्या नियंत्रण था, लेकिन इसे अनैतिक तरीके से लागू किया गया, जिससे व्यापक जन आक्रोश पैदा हुआ।
संविधान में संशोधन: इंदिरा गांधी ने संविधान में कई संशोधन किए, जिनका उद्देश्य उनके राजनीतिक शक्ति को बनाए रखना था। 42वें संशोधन के जरिए प्रधानमंत्री की शक्तियों को बढ़ाया गया और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम किया गया।
आपातकाल की समाप्ति
जनता के बीच बढ़ते हुए असंतोष और अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण, इंदिरा गांधी ने 18 जनवरी 1977 को चुनाव कराने की घोषणा की और 21 मार्च 1977 को आपातकाल समाप्त हो गया। मार्च 1977 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार हुई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी ने सरकार बनाई।
निष्कर्ष
आपातकाल का दौर भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने न केवल देश की राजनीतिक संरचना को प्रभावित किया बल्कि लोगों के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता की महत्ता को भी उजागर किया। इंदिरा गांधी के आपातकालीन फैसलों की व्यापक आलोचना हुई, लेकिन इस अवधि ने भारतीय लोकतंत्र की ताकत और जनता की जागरूकता को भी प्रदर्शित किया। यह समय अब भी भारतीय राजनीति और इतिहास के अध्येताओं के लिए एक महत्वपूर्ण अध्ययन का विषय बना हुआ है।
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